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हाल ही में उत्तर प्रदेश सरकार ने अधिकारियों जन प्रतिनिधियों व स्वंमसेवक संस्थाओं से स्कूल गोद लेने की अपील की थी ताकि। राज्य के सरकारी विद्यालयों की स्थिति में सुधार हो। शुरुआत में लग रहा था कि इस अपील का तेजी से असर होगा व सरकारी स्कूलों की स्थिति में बहुत जल्दी बड़े स्तर पर बदलाव देखने को मिलेगा। मगर अब तक इस उम्मीद ने निराश ही किया है। उत्तर प्रदेश शासन की अपील का कोई खास प्रभाव नज़र नहीं आया। इस मुहिम में राज्य के बड़े व मुख्य शहर ही पिछड़ते हुए दिख रहे हैं जो कि सोचने का विषय है।

अब तक बांदा में सबसे ज्यादा स्कूलों को गोद लिया गया है। बांदा के करीब 199 स्कूल गोद लिए गए हैं। कानपुर और  बरेली महानगर भी इस सूची में प्रथम पंक्ति में काबिज हैं। वहीं राजधानी लखनऊ  व गोरखपुर ने खासा निराश किया है लखनऊ में 35 व गोरखपुर की स्थिति तो और भी नाज़ुक है। गोरखपुर में 10 से भी कम स्कूल गोद लिए गए हैं। बात की जाए सबसे फिसड्डी जगह की तो इस सूची में शामली सबसे पीछे है। शामली में केवल 2 स्कूल हो गोद लिए गए हैं।

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यह स्थिति तब है जब शासन लगातार अपनी ओर से समीक्षा कर रहा है व अपने जनप्रतिनिधियों व मुख्य संस्थाओं से इस प्रयास को आगे बढाने की निरंतरत अपील भी कर रहा है।

50 से कम संख्या में  स्कूल गोद लेने वाले जिले:

रिपोर्ट्स के मुताबिक प्रदेश  में 50 से कम संख्या में  स्कूल गोद लेने के मामले में करीब दो दर्जन जिलों के नाम हैं। जिसमें  रामपुर, अंबेडकरनगर, बहराइच लखीमपुर, खीरी, श्रावस्ती, बागपत, लखनऊ, महोबा, अमेठी, झांसी, कानपुर देहात, सोनभद्र, चित्रकूट ,गोंडा, प्रयागराज, एटा, अलीगढ़ व बलिया, हापुड़, हरदोई, बुलंदशहर, सीतापुर।

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