भारत देश की नई राष्ट्रपति Draupadi Murmu का पहला वक्तव्य जनजातीय अभिवादन ‘जोहार’ से शुरू हुआ और भारत की जनजातीय संस्कृति और विरासत से ओतप्रोत रहा। Draupadi Murmu ने देश की आजादी के लिए लड़ने वाले जनजातीय समुदाय के वीरों, परंपराओं और प्रकृति से घनिष्ठता के बारे में कई जानकारियां दीं। और इसका समापन भी उन्होंने उड़िया संत कवि भीम भोई की कविता से किया।
शपथ ग्रहण समारोह के दौरान संसद के सेंट्रल हॉल में दिए गए 18 मिनट के वक्तव्य में राष्ट्रपति ने देश के विभिन्न हिस्सों में संथाल, पाइका, कोल, भील आदि जनजातीय समुदायों के द्वारा स्वतंत्रता आंदोलन की मजबूती के लिए दिए गए योगदान को याद किया। इसके साथ ही उन्होंने ‘धरती आबा’ भगवान बिरसा मुंडा के त्याग, सामाजिक उद्धार और देश प्रेम को सबके लिए प्रेरणा बताया। और खुशी जताई कि देश में जनजातीय समुदायों के योगदान को याद करने के लिए संग्रहालय बनाए जा रहे हैं।
राष्ट्रपति Draupadi Murmu ने कहा कि आज हम अपनी पृथ्वी पर ऐसे जीवन की बात कर रहे हैं जो ग्रह को नुकसान न पहुंचाए। प्राचीन भारतीय परंपराओं ने हमेशा से इसी जीवन शैली को बढ़ावा दिया है, आज इसका महत्व और भी बढ़ गया है। इसके साथ ही जनजातीय समुदायों ने प्रकृति से केवल जरूरत भर का लेना और उसकी भरपाई करना भी सिखाया है। भारत समेत पूरी दुनिया को ऐसी संवेदनशीलता सीखनी होगी। और यह खुशी की बात है कि आज इसके लिए भारत पूरे विश्व का मार्गदर्शन कर रहा है।
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अपने निजी जीवन के बारे में बताते हुए मुर्मू ने कहा कि ओडिशा के एक छोटे से जनजातीय गांव से कॉलेज पहुंचने वाली मैं पहली लड़की बनी। जिस संस्कृति में मेरा जन्म हुआ था, वह हजारों वर्षों से प्रकृति के साथ मिलजुल कर रहती आ रही है। यही वजह है कि मैंने मानव जीवन के लिए जंगलों और नदी-तालाबों का महत्व समझा।
उन्होंने कहा कि- “मैंने अपनी जीवन यात्रा पूर्वी भारत में ओडिशा के एक छोटे से आदिवासी गांव से शुरू की थी। मैं जनजातीय समाज से हूं, और वार्ड पार्षद से लेकर भारत की राष्ट्रपति बनने तक का अवसर मुझे मिला है। यह लोकतंत्र की जननी भारतवर्ष की महानता है। ऐसे प्रगतिशील भारत का नेतृत्व करते हुए आज मैं खुद को गौरवान्वित महसूस कर रही हूं।”