उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जनपद में 15 जुलाई, शुक्रवार को केदारघाटी में स्थित राजकीय इंटर कॉलेज लमगौंडी के छात्रों द्वारा धूम- धाम से हरेला पर्व मनाया गया। और सभी छात्रों व शिक्षकों द्वारा कई सारे नए पौधे लगाए गए। इस कार्यक्रम में NSS के छात्रों द्वारा अहम भूमिका निभाई गई। शिक्षक शिव प्रसाद बहुगुणा और संदीप व्यास जी ने भी पौधा लगाने में बच्चों का साथ दिया तथा उनका हौसला बढ़ाया। इसके साथ ही राजकीय इंटर कॉलेज, नाग जगाई और अटल उत्कृष्ट राजकीय इंटर कालेज, गुप्तकाशी में भी धूम- धाम से हरेला पर्व मनाया गया।
हिंदू कैलेंडर के हिसाब से श्रावण महीने में मनाया जाने वाला हरेला, बारिश के मौसम (मानसून) की शुरुआत का प्रतीक है। हरेला का अर्थ है “हरे रंग का दिन।” यह किसानों के लिए एक शुभ दिन माना जाता है, क्योंकि इसी दिन से वह अपने खेतों में बुवाई का चक्र शुरू करते हैं।
यह उत्तराखंड राज्य के कुमाऊं क्षेत्र के लोगों द्वारा अधिक मनाया जाता है। लोकप्रिय मान्यता के अनुसार, यह दिन भगवान शिव और देवी पार्वती के विवाह के धार्मिक उत्सव का प्रतीक है। गाँव के लोग भगवान शिव और देवी पार्वती की मिट्टी की मूर्तियाँ बनाते हैं। इन्हें डिकारे या दीकार के नाम से जाना जाता है।
श्रावण मास में मनाए जाने वाला हरेला सामाजिक रूप से अपना विशेष महत्व रखता है। तथा समूचे कुमाऊँ में अति महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक माना जाता है।
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हरेला को लोग हरेला पर्व से दस दिन पहले अपने घर में किसी पात्र में बोते है। इसको बोने के लिए जौ, धान, मक्का आदि चीजें बो कर इसे उगाते है। तथा श्रावण माह के पहले दिन इसे किसी सामूहिक मंदिर या शिव मंदिर में ले जाते है। और सभी लोग मिलकर हरियाली की पूजा करते है, तथा इसे तोड़कर सबसे पहले भगवान शिव मां पार्वती को चढ़ाते है ।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार लोगो का मानना है की लोग अपने घरों में हरियाली इस लिए भी लगाते है की घर में सुख, शांति, खुशहाली, अच्छी फसल बनी रहे। अंत में हरियाली को तोड़कर, इसको भगवान को चढ़ाया जाता है। और अंतिम में इसे प्रसाद के रूप में सभी लोगो को बांटा जाता है।
हरेला पर्व पर एक गीत भी गाया जाता है जिससे छोटों को आशीर्वाद दिया जाता है:
जी रया, जागी रया,
यो दिन बार, भेटने रया,
पात जस पौल हैजो,
स्यालक जस त्राण हैजो,
हिमालय में ह्यू छन तक,
गंगा में पाणी छन तक,
हरेला त्यार मानते रया,
जी रया, जागी रया।