यह कहानी राजा मेदिनीशाह से जुड़ी है, जो 1667 के आसपास गढ़वाल के राजा बने थे।
हरिद्वार के कुंभ मेले में हमेशा गढ़वाल का राजा ही सबसे पहले स्नान किया करता था। उसके बाद ही बाकी राजाओं का स्नान करने का नंबर आता था। जिस साल की यह घटना है उस साल कहा जाता है, कई राजा हरिद्वार पहुँचे थे। और उन सभी ने मिलकर तय किया कि पर्व के दिन पर सबसे पहले गढ़वाल का राजा स्नान नहीं करेगा। सभी राजा इस पर सहमत हो गए। इतना ही नहीं बल्कि उन्होंने गढ़वाल के राजा को किसी तरह की जबरदस्ती करने पर जंग के लिए तैयार रहने की चेतावनी तक दे दी थी। सभी राजा आपस में एकजुट हो गए थे। वहीं, दूसरी तरफ गढ़वाल का राजा अकेला पड़ गया था।
इस बात के जवाब में महाराजा मदिनीशाह ने कहा कि यह पुण्य क्षेत्र है। और यहां कुंभ मेला जैसा महापर्व का आयोजन हो रहा है। इसलिए रक्तपात सही नहीं है। उन्होंने कहा अन्य राजा ही पहले स्नान कर सकते हैं, मुझे इससे कोई शिकायत नहीं। परन्तु अन्य राजाओं के पास अपने इस भेजे हुए संदेश में उन्होंने आखिरी पंक्ति यह भी जोड़ी थी कि “यदि वास्तव में गंगा मेरी है तो उससे मेरा मान सम्मान रखना होगा तो वह स्वयं मेरे पास आएगी।”
बाकी राजा इस पंक्ति का अर्थ नहीं समझ पाए। और वह अगले दिन गढ़वाल के राजा से पहले कुंड में स्नान करने की तैयारियों में जुट गए। ऐसा कहा जाता है कि गढ़वाल के राजा ने चंडी देवी के नीचे स्थित मैदान पर अपना डेरा डाला और मां गंगा की पूजा में लीन हो गए। बाकी राजा सुबह हरि जी के कुंड यानी हरि की पैडी में स्नान के लिए पहुंचे लेकिन वहां जाकर देखते हैं कि पानी ही नहीं है। मछलियां तड़प रही थी। गंगा ने अपना मार्ग बदल दिया था। गंगा गढ़वाल के राजा के डेरे के पास से बह रही थी, राजा मेदिनीशाह ने गंगा पूजन करने के बाद स्नान किया।
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जब अन्य राजाओं को यह पता चला तो उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ। उन्हें भी लगने लगा की गढ़वाल का राजा वास्तव में भगवान बद्रीनाथ का अवतार है। और इसलिए किसी अनहोनी से बचने के लिए सभी राजा तुरन्त मेदिनीशाह के पास पहुँचे। उनसे माफ़ी मांगी और फिर स्नान किया।
उस रात गंगा ने जब अपना मार्ग बदला तो नई धारा बनी जिसे नीलधारा कहा जाता है। इसके बाद से यह तय हो गया कि किसी पर्व के समय गढ़वाल के राजा की उपस्थिति में वही सबसे पहले स्नान करेंगे। आज यह नीलधारा पक्षी विहार के कारण अधिक प्रसिद्ध है। गढ़वाल के राजा को तब बद्रीनाथ का अवतार माना जाता
आपको बता दें की राजा मेदिनीशाह, राजा पृथ्वीपति शाह के पुत्र थे। राजा मेदिनीशाह को अपनी दादी रानी कर्णावती और अपने पिता की तरह मुगलों से जंग नहीं लड़नी पड़ी थी।उनके औरंगजेब से करीबी रिश्ते थे। मेदिनीशाह ने मुगल शासक के दरबार में जाकर वहां कुछ समय भी बिताया था।
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