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गढ़वाल की लोककथाओं में जीतू बगड्वाल प्रसिद्ध हैं। जीतू बगड्वाल एक शानदार बांसुरी वादक थे।

ऐसा माना जाता है कि उत्तराखंड राज्य में देवी-देवताओं का वास है, इसलिए इस राज्य को देवभूमि भी कहा जाता है। आज हम आपको उत्तराखंड के एक प्रसिद्ध देवता की कहानी बताएंगे, जिनकी वर्षों से उत्तराखंड के ग्रामीण छेत्रों में पूजा होती आ रही है।

एक बार की बात है, उत्तराखंड के बगोड़ी गांव में जीतू नाम का एक लड़का रहता था। वह एक गरीब परिवार से ताल्लुक रखता था परन्तु वह अपने समय का अकेला वीर पुरुष, सुन्दर, प्रकृति प्रेमी, गीतों का रसिया और बाँसुरी वादक था। जीतू के जीवनकाल और उससे जुड़ी अन्य घटनाओं के सम्बन्ध में कई दन्तकथाएं प्रचलित हैं।

जीतू बगड्वाल के पिता का नाम गरीबाराई और माता का नाम सुमेरु था। जीतू का एक भाई सोबनू और एक बहिन शोभना थी जिसका ससुराल दूर के एक गाँव कथुड में था।

कहते है कि वह अपनी बहन शोभना की नन्द भरणा के प्यार में पागल था। जीतू और भरणा एक दूसरे को बहुत चाहते थे। लेकिन गाँव के बीच लम्बी दूरी होने के कारण वह दोनो मिल नहीं पाते थे।

एक बार, जीतू जब बांसुरी बजा रहा था, तो पास के एक क्षेत्रीय राजा( राजा मानशाह) भी वहाँ से गुजर रहे थे। जीतू की बांसुरी की धुन सुनकर वह प्रसन्न हो गए और उन्होंने उसको अपने पास बुलाया। राजा उसकी खूब तारीफ़ करता है।

  • राजा- अरे बेटा, तुम इतनी मधुर बांसुरी बजाते हो, मैंने कभी सोचा भी नहीं था हमारे राज्य में कोई इतनी सुंदर बांसुरी भी बजाता होगा। क्या है तुम्हारी प्रेरणा ?
  • जीतू- महाराज, मेरी ग़रीबी-मेरा दुख ही मेरी प्रेरणा है। जब भी मेरा मन उदास होता है या मै बहुत दुखी होता हूँ तो अक्सर बांसुरी बजाने लगता हूँ।
  • राजा- बताओ बेटा जीतू, मैं तुम्हारी क्या मदद कर सकता हूँ।
  • जीतू- महाराज एक गरीब क्या ही माँग सकता है? मुझे महाराज बस इतना दे दीजिए जिस से मै अपने परिवार का पेट पाल सकूँ।

राजा मानशाह उससे खुश होकर बहुत सारे हरे-भरे खेत उसके नाम कर देते है। साथ ही राजा ने उसे अपना दरबारी नियुक्त कर दिया। बाद में उसे कर वसूलने का जिम्मा सौंप दिया था।

एक बार वर्षा ऋतु आने पर जीतू और उसके घरवालों ने अपने पंडित से धान की रोपड़ी का शुभ दिन निकलवाया तो आषाढ़ मास की छह गती शुभ दिन जीतू की बहन शोभनी के हाथ से जुड़ा।

शोभनी के हाथ रोपड़ी का दिन निकलने पर जीतू अपनी प्रेमिका से मिलने का अच्छा अवसर मानकर शोभनी को बुलाने हेतु जाने के लिए हुए तो उनकी तिला नामक बकरी ने छींक लिया। इसे अशुभ संकेत समझकर माँ ने जीतू को को उसकी बहन के ससुराल जाने से मना कर दिया।

किन्तु वह नहीं माना और जीतू बन-ठन के अपने गाँव से अपनी बहन शोबना और स्याली भरणा के गाँव की तरफ़ चलता है। कही दूर चलकर जब वह खैठ पर्वत पर पहुँचता है तो काफ़ी थक जाता है और कुछ देर वहाँ बैठकर आराम करने लगता है।

कुछ समय बाद जीतू अपनी बांसुरी हाथ में लेकर जंगल में वह बांसुरी बजाने लगा तो तब वहाँ अचानक बांसुरी की धुन सुनकर पर्वत जाग गए, पशु-पक्षियों ने चरना और खाना छोड़ दिया।

वह इलाका आछरियों (परियों) से घिरा हुआ था और आछरियों(परियों) ने जीतू पर जादू कर दिया था। जीतू की बाँसुरी की मधुर धुन पर आछरिया (परियाँ) खिंची चली आई थी।

वह जीतू को अपने साथ ले जाना चाहती थी इसलिए वह उसका हरण करने की कोशिश करती है। जीतू उनको बहुत समझाने की कोशिश करता है परन्तु आछरियों(परियों) ने उसकी एक ना सुनी।

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अंत में जीतू उनसे वादा करता है कि “तुम जैसा चाहोगी, मै वैसा ही करूँगा” बस मुझे अभी जाने दो। जीतू उनको वचन देता है- अभी मुझे अपनी बहन शोभना के ससुराल उसको लेने जाना है, छह गती आषाढ़ धान रोपाई का दिन है। वह हो जाने के बाद मै तुमारे साथ चलूँगा। जीतू के यह कहने के बाद आछरियां वहाँ से अचानक विलुप्त हो जाती है।

ऐसी विपदा में जब जीतू अपने कुल देवता भैरवनाथ और कुलदेवी भवानी का सुमिरन करता है। उसके ईस्ट देवता तथा कुल देवी-देवता के प्रताप से वह आछरियां(परियाँ) उसे कुछ दिन के लिए छोड़ देती है।

जीतू अपनी बहन शोभना को लेकर जब अपने गाँव बगोडी वापिस आ जाता है तो घरवाले बहुत ख़ुश हो जाते है। जीतू किसी से अछूरीयों वाली बात के बारे में बात नहीं करता परन्तु वह मन ही मन काफ़ी उदास रहने लगा था। और आख़िरी में जब धान रोपड़ि का दिन आ जाता है, जीतू अपने बैलों के साथ खेत में पहुँच जाता है।

अचानक एक रथ आता है और उसमें 9 बहने अछरिया आती है, वह जीतू का हरण कर लेती है।जीतू और उसके बैलों की जोडी रोपाई के खेत में हमेशा के लिए धरती में समा जाते है।

जीतू पछताने लगता है अगर उसने अपनी माँ की बात मान ली होती तो उस पर यूँ मुसीबत का पहाड़ ना टूटता। इसलिए इस कहानी से हमको यह सिख मिलती है की हमको हमेशा अपने माता-पिता की बात मान्नी चाइए। जीतू का उसके बाद से कभी भी कुछ पता नहीं चला और ना ही वह कभी अपने घरवालों के पास वापिस जा पाया। परन्तु उसके जाने के बाद उसके परिवार वालों के साथ बहुत अजीब सी घटना घटी।

जीतू के जाने के बाद उसके परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। जीतू के भाई की मौत हो जाती है। फिर वह अदृश्य रूप में परिवार की मदद करता है। राजा जीतू की अदृश्य शक्ति को भांपकर घोषणा करते हैं कि आज से पूरे गढ़वाल में जीतू को देवता के रूप में पूजा जाएगा। तब से आज तक जीतू की याद में पहाड़ के गांवों में जीतू बगड्वाल का मंचन तथा नृत्य आयोजित किया जाता है। जो पहाड़ की अनमोल सांस्कृतिक विरासत है।

उसकी वीरता, सुन्दरता, बाँसुरी वादन और आछरियों द्वारा उसका हरण कर लिए जाने की घटना को पवांडों और जागरों में गाए जाने की प्रथा आज भी गढ़वाल में प्रचलित है। बगुड़ी गाँव का निवासी होने के कारण वह ‘बगुड़ीवाल’ और आगे चलकर “जीतू बगड्वाल” के नाम से जान्ने लगा।

नौ बैणी आंछरी ऐन, बार बैणी भराडी
क्वी बैणी बैठींन कंदुड़यो स्वर
क्वी बैणी बैठींन आंख्युं का ध्वर
छावो पिने खून , आलो खाये माँस पिंड
स्यूं बल्दुं जोड़ी जीतू डूबी ग्ये
रोपणी का सेरा जीतू ख्वे ग्ये…

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