लमगोंडी गाँव उत्तराखंड राज्य के रुद्रप्रयाग जिले के उखीमठ ब्लॉक में स्थित है। गुप्तकाशी बाजार से इस गाँव की दूरी 8 से 9 किमी है। लमगोंडी गांव में केदारनाथ धाम के तीर्थ पुरोहित रहते है। यह सभी तीर्थ पुरोहित 6 महीने केदारनाथ धाम में रहते है। और धाम के कपाट बंद हो जाने के बाद यह सभी तीर्थ पुरोहित पूरे भारत के अलग- अलग राज्यों में अपने- अपने जजमान व यात्रियों के पास जाते है। जितने भी यहां तीर्थपुरोहित है, उन सब के क्षेत्र आपस में बँटे हुए है। किसी के जजमान राजस्थान के है, किसी के उत्तर प्रदेश, किसी के साउथ, तो किसी के हरियाणा, आदि। सभी तीर्थपुरोहित अपने साथ एक कॉपी व डायरी भी रख कर चलते है जिसमें उनके जजमानों का पता सहित पूरी जानकारी रहती है। पहले के समय में जब संचार का साधन नहीं था, तब से लेकर आज तक यह परंपरा चली आ रही है।

गांव में आपको पोस्ती, अवस्थी, जुगरान, वाजपेयी, कूर्मांचली और लाल मोहरिया जाती के लोग मिल जाएंगे। इसके साथ ही गाँव में अनुसूचित जाति के लोग भी निवास करते है। गांव में सामाजिक समरसता की एक मिशाल कायम की हुई है।

लमगोंडी गांव को बमसू नाम से भी जाना जाता है। इस गाँव में राजा बलि के पौत्र और उषा के पिता बाणासुर को पूजा जाता है जो रावण के वंशज माने जाते है। आपको बता दें की बाणासुर भगवान शिव के परम भक्त थे।

पुराने जमाने में इस पूरे क्षेत्र का राजा बाणासुर था। इसी प्रकार से इसे बाणासुर की भूमि भी कहा जाता है। इसके साथ ही यहां श्री कृष्ण जी के पोते अनिरुद्ध की भी विशाल प्रतिमा है।

दरअसल, बाणासुर की पुत्री उषा एक दिन सपने में किसी अदबुद्ध बालक को देखती है। जिसके बाद वह अगले दिन अपनी सहेली चित्रलेखा को अपने सपने के बारे में बताती है। और पूछती है की अब वह मुझे कैसे मिलेगा।

यह सब सुनकर चित्रलेखा उस समय के तमाम राजाओं के चित्र बनाती है और जब वह अनिरुद्ध का चित्र बनाती है तो उषा कहती है की यहीं वो युवक है जो मेरे सपने में आया था। इस सब के बाद चित्रलेखा द्वारका में जाती है और वहां से अनिरुद्ध जी को लहराते खेतों के बीच बसे इस सुंदर से गांव लमगोंडी में ले आती है।

अनिरुद्ध जी उषा के साथ पूरे गांव का भ्रमण करने लगते है। परन्तु जब बाणासुर को इस बात का पता चलता है तो वह काफ़ी क्रोधित हो जाते है। क्रोध में आकर वह कहते है की- “मेरे गण में यह कौन पधार चुका है, जो मेरी बिटियाँ के साथ बात कर रहा है।” यह सब के बाद बाणासुर और अनिरुद्ध के बीच विशाल युद्ध छिड़ जाता है। जिसके चलते स्वयं कृष्ण जी को भी युद्ध में भाग लेने के लिए यहां आना पड़ा। अनिरुद्ध द्वारा युद्ध जीत जाने पर उषा के साथ उनका विवाह ऊखीमठ में हो जाता है।

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ऐसा कहा और माना जाता है की लमगोंडी गांव के बसने वाले लोग भुकुंट की संतान है। इसके साथ ही कुछ अन्य लोग जैसे शुक्ला, तिवारी, अवस्थी, आदि किसी जमाने में दूसरे क्षेत्रों से यहां आकर बसे।

इन गांव वालों के पास आदि शंकराचार्य जी द्वारा दिए गए कुछ लेख है, जिसमें उन्होंने लिखा था की केदारनाथ धाम के तीर्थ पुरोहित यह लोग रहेंगे। तब से लेकर आज तक यह परंपरा चली आ रही है।

खास बात यह है की इस गाँव से कार्तिक स्वामी, तुंगनाथ, चौखंबा और केदारनाथ पर्वत, केदारडोम, मंदाणी मदमहेश्वर सहित केदारघाटी की सभी चोटियाँ दिखाई देती है।

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