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उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में केदारनाथ यात्रा के मुख्य पड़ाव गौरीकुंड में प्रसिद्ध गौरीमाई मंदिर के पीछे भूस्खलन हो रहा है। जिसका एक विडीयों भी सामने आया है। भूस्खलन आने की वजह से भारी मात्रा में मंदिर के आंगन में मलबा भी गिरा हुआ है। यह भी कहा जा रहा है की भारी बारिश की वजह से भूस्लखन बड़े पैमाने पर भी हो सकता है। जिसकी वजह से मंदिर पर खतरा और भी बढ़ सकता है।

गौरीकुंड भारत के उत्तराखंड राज्य के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है। आपको बता दें की गौरीमाई मंदिर में माता पार्वती की पूजा की जाती है। सभी यात्री केदारनाथ यात्रा के दौरान इस स्थान पर रूकते हुए, यहां मौजूद कुण्ड में स्नान करते है और फिर यात्रा के लिए आगे बढ़ते है।

इस स्थान पर माता पार्वती का मंदिर है। गौरीकुंड एक हिंदू तीर्थ स्थल है। और इसी स्थान से प्रसिद्ध केदारनाथ यात्रा का पैदल मार्ग शुरू होता है। गौरीकुंड समुद्र तल से 6502 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। गौरीकुंड का यह धार्मिक स्थल भगवान शिव की पत्नी देवी पार्वती से जुड़ा हुआ है। माता पार्वती को गौरी भी कहा जाता है। केदारनाथ यात्रा के दौरान यात्री इसी स्थान पर रुकते हैं और इस कुंड में स्नान कर यात्रा के लिए आगे बढ़ते हैं। इस कुंड में गर्म पानी की धारा बहती है।

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हिंदू लोककथाओं में, माता पार्वती ने भगवान शिव की पहली पत्नी सती का पुनर्जन्म लिया। इसलिए पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए इस स्थान पर तपस्या की थी। ऐसा माना जाता है कि जब तक भगवान शिव ने उनके प्रेम को स्वीकार नहीं किया, तब तक माता पार्वती इस स्थान पर रहती थीं। जब भगवान शिव ने मां पार्वती के प्रेम को स्वीकार किया तो उसके बाद माता पार्वती और भगवान शिव का विवाह त्रियुगीनारायण स्थान पर हुआ था। जो गौरीकुंड से लगभग 12 किलोमीटर दूर स्थित है।

इस जगह से एक और पौराणिक कथा जुड़ी हुई है। इस कुंड में स्नान कर देवी पार्वती ने अपने शरीर के मैल से गणेश को बनाया और प्रवेश द्वार पर खड़ी हो गईं। जब भगवान शिव इस स्थान पर पहुंचे तो गणेश ने उन्हें रोक लिया। भगवान शिव ने क्रोधित होकर गणेश का सिर काट दिया। देवी पार्वती बहुत दुखी और क्रोधित हो गईं, देवी पार्वती ने भगवान शिव से अपने पुत्र गणेश को जीवित करने के लिए कहा। भगवान शिव ने हाथी का सिर गणेश के शरीर पर रख दिया। इस प्रकार भगवान गणेश के जन्म की कथा और हाथी के सिर की कथा इस स्थान से जुड़ी हुई है।

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