न जाने क्यों जब भी इस वीर Shaheed Bhagat Singh की बात आती है तो रोंगटे खड़े हो जाते है। जब कभी भी ख़ुद को आज़ाद महसूस करता हूँ तो भगत सिंह की याद आ जाती है। बचपन से लेकर आज तक महसूस होता है कि क्या सच में जीवन में हमने कुछ किया है? मेरी उम्र अभी 23 साल की है। और वह 23 साल की उम्र में ही भारत देश की आन बान और शान को बचाते- बचाते शहीद हो गया था। 23 साल की उम्र में साहसी भगत सिंह देश की आज़ादी के लिए खुशी- खुशी फांसी के फंदे पर लटक गया था। हम और आपने क्या किया है अपने 23 साल की उम्र में? आपको इस बात से ही पता लग गया होगा की वह एक ही असली लाल था भारत माँ का जिसने अपनी जवानी भी भारत देश के लिए कुरबान कर दी थी। पता नहीं क्यों इस लेख को लिखते हुए ऐसा महसूस हो रहा है की जैसे मेरी कलम के भी रोंगटे खड़े हो गए हो। खैर, कलम से सरदार भगत सिंह की एक बड़ी प्यारी बात याद आई। वह कहते थे की-
“इस तरह वाक़िफ है मेरी कलम मेरे जज्बातों से,
अगर मै इश्क़ लिखना भी चाहूँ तो इंकलाब लिख जाता हूँ।”
जो भी लोग न्याय के लिए, अत्याचार के खिलाफ लड़ने की विचारधारा रखते है। उन सभी के लिए Shaheed Bhagat Singh से बड़ी प्रेरणा और कोई नहीं हो सकती है। वह इतने बहादुर थे की उन्होंने अपना पूरा जीवन एवं अपनी जवानी भारतीय स्वतंत्रता के संघर्ष के लिए समर्पित कर दी थी। वह एक असली और सच्चे क्रांतिकारी थे। आज हम आज़ाद भारत के वासी है, बेख़ौफ खुली हवा में सांस लेते है। यह सब सिर्फ और सिर्फ भगत सिंह की ही देन है। इस लेख में आज हम आपको भगत सिंह के जीवन की पूरी कहानी बताएँगे तो कृपा इस लेख को पूरा पढ़े। अरे! मै ऐसा क्यों कह रहा हूँ? क्योंकि कोई भी ऐसा भारतीय हो ही नहीं सकता जो Shaheed Bhagat Singh के बारे में ना पढ़ना चाहे।
Who is Shaheed Bhagat Singh: जन्म/ परिवार/ शिक्षा
भगत सिंह देश के सबसे बड़े क्रांतिकारी थे। इन्होंने अपना पूरा जीवन भारत देश के लिए न्योछावर कर दिया था। इनका जीवन आज भी युवाओं को प्रेरणा देता है। भगत सिंह का जन्म 27, दिसंबर 1907 में लायलपुर जनपद के बंगा में एक सिख परिवार में हुआ था। जो आज पाकिस्तान में स्थित है। उनके पिता का नाम सरदार किशन सिंह और माता का नाम विद्यावती कौर था। भगत सिंह पूरे 10 भाई- बहन थे। Shaheed Bhagat Singh भारत के स्वतंत्रता सेनानियों में से एक थे। जिनके अंदर अपने बचपन से ही देश के लिए मर- मिटने का जज्बा था।
लाहौर में एक स्कूल था जो उस वक्त ब्रिटिश सरकार द्वारा प्रभावित था। उस स्कूल में दाखिला ना लेकर उन्होंने Dayanand Anglo Vedic School मे दाखिला लिया था। जिसे आज सभी D.A.V. School के नाम से जानते है। अंग्रेजी माहौल को छोड़ आर्य समाजी माहौल में पढ़ना उन्होंने चुना। बचपन से ही पढ़ाई में वह काफ़ी तेज व होनहार थे। उनको किताबें पढ़ने का बहुत शौक था। राजनीतिक सुधार, सामाजिक सुधार, तथा आर्थिक सुधार जैसे विषयों में उनकी अधिक रुचि थी।
Full Name | भगत सिंह संधू |
Nickname | भागो वाले |
Profession | भारतीय क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानी |
Physical Stats & More | |
Eye Colour | काला |
Hair Colour | काला |
Personal Life | |
Date of Birth | 28 सितंबर 1907 |
Birth Place | बंगा, पंजाब (अब पाकिस्तान में) |
Date of Death | 23 मार्च 1931 |
Place of Death | लाहौर, पंजाब |
Age (at the time of death) | 23 साल |
Death Cause | Sentenced to Death |
Zodiac sign/Sun sign | तुला |
Nationality | भारतीय |
Hometown | Lahore, Punjab, British India |
School | Dayanand Anglo-Vedic High School |
College | National College (1923) |
Educational Qualification | Bachelor’s in Arts (B.A.) |
कैसे बने क्रांतिकारी
13 अप्रैल सन् 1919 में हुए जलियाँवाला बाग हत्याकांड से भगत सिंह बहुत दुखी हो गए थे। जब जलियाँवाला बाग हत्याकांड हुआ था तो उस समय उनकी उम्र सिर्फ 11-12 साल की थी। 40 किलोमीटर दूर पैदल चलकर वह उस दिन जलियाँवाला बाग पहुंचे। उसी जलियाँवाला बाग, जहां जनरल डायर ने सबको गोलियों से मारने के आदेश दे दिए थे। महज 11-12 साल की उम्र वाले उस छोटे बच्चे भगत सिंह ने गुस्से में आकर वहां खून से भरी कुछ मिट्टी बॉटल में भर कर घर ले आए। उन्होंने कहां की- “ये खून मेरे देश के शहीदों का है, जिनका मैं अंग्रेज सरकार से बदला लूँगा। एक दिन मै अंग्रेजों को भारत देश से मार भगाऊँगा।”
उनके पिता जी सरदार किशन सिंह संधु एक एकबार खेती कर रहे थे। तो भगत में उनसे सवाल किया की “आम की गुटलियों को क्यों बो रहे हो।” जवाब में पिता ने अपने बेटे भगत से कहा- “इससे आम के पेड़ लगेंगे।” जिसके बाद भगत सिंह ने कहा “ठीक है तो अब से मै भी बंदूक बोऊँगा, जिससे बंदूकों का पेड़ लग जाएंगे।” उनको बंदूके इसलिए चाइए थी ताकीं उनकी मदद से वह अंग्रेजों को भगा पाए।
असहयोग आंदोलन
सन् 1920 के आसपास, भारत देश कि राष्ट्रपिता कहे जाने वाले महात्मा गांधी को जनता द्वारा खूब सहयोग दिया जा रहा था। महात्मा गांधी अहिंसवादी विचारधारा रखने वाले इंसान थे। वह कहते थे की बिना लड़ाई किए वह अंग्रेजों को भारत देश से भगाएँगे। जिसके तहत उन्होंने Non-Cooperative Movement(असहयोग आंदोलन) शुरू किया।
इस आंदोलन के तहत उनकी सोच थी की गोरों(अंग्रेजों) द्वारा बनाई गई चीजों का बहिष्कार करों। उनकी लाई हुई चीजों का त्याग करों, उनको मत खरीदों। इससे वह खुद ही परेशान होकर वापिस चले जाएँगे।
इस सब प्रभावित होकर भगत सिंह भी महात्मा गांधी द्वारा चलाए गए इस असहयोग आंदोलन का हिस्सा बने। असहयोग आंदोलन को भगत सिंह ने खुलकर समर्थन किया। वह खुले आम अंग्रेजों को ललकारा करते थे।
चौरी-चौरा कांड
4 फरवरी 1922 को गोरखपुर जिले में स्थित चौरी-चौरा गांव में एक बैठक की गई। उस बैठक में सलाह की कि पास के बाजार में जुलूस निकाला जाएगा। ब्रिटिश सरकार के हुकुम पर पुलिस ने उनके जुलूस को रोकने का प्रयास किया। और प्रदर्शनकारीयों पर गोलियां बरसाने लगे। जिसकी वजह से भीड़ और भी ज्यादा उग्र हो गई। घटना में पुलिस की गोलियों के चपेट में आए कई निहत्थे लोगों की मौत हो गई और कई लोग घायल भी हो गए थे। पुलिस के इस बर्ताव से लोगों का गुस्सा और भी बढ़ गया। जिसके बाद गुस्साए हुए लोगों ने चौरी-चौरा पुलिस स्टेशन को जला दिया। इस घटना में 23 पुलिसकर्मियों की मौत हुई। इस हिंसक कृत्य से महात्मा गांधी काफ़ी आहत हुए। जिसके बाद उन्होंने 12 फरवरी 1922 को बारदोली में कांग्रेस की बैठक में असहयोग आंदोलन को वापस लेने का निर्णय लिया। क्रांतिकारियों के इस आक्रोश को देख ब्रिटिश सरकार की नींव हिल गई थी। और ऐसा पहली बार हुआ जब भारत ने अंग्रेज हुकूमत पर पलटकर वार किया।
नरम दल/ गरम दल
महात्मा गांधी द्वारा इस आंदोलन का बंद किए जाने पर भगत सिंह और उनके जैसे विचारधारा रखने वाले लोग काफ़ी परेशान हुए। जिसके बाद सभी 2 दलों में विभाजित हो गए। भगत सिंह जैसी विचारधारा रखने वाले लोग गरम दल में शामिल हुए। वहीं दूसरी तरफ़ गांधी जैसी विचारधारा वाले लोग नरम दल में शामिल हुए।
आगे चलकर भगत सिंह ने BA की पढ़ाई के लिए लाहौर नेशनल कॉलेज में दाखिला लिया। जहां उनकी मुलाकात सुखदेव थापर, भगवती चरण, जैसे कुछ लोगों से हुई। उस समय आज़ादी की लड़ाई जोरों पर थी।
साथ ही भगत सिंह की मां ने उनकी शादी के लिए लड़की तलाशनी शुरु कर दी थी। जब एक लड़की उनकी मां को अच्छी लगी तो उन्होंने अपने बेटे भगत को बताया। परन्तु जवाब में भगत ने कहा-
“मां ये मेरी दुल्हन नहीं होगी,
आज़ादी ही मेरी दुल्हन होगी।”
रातों रात घर पर एक चिट्ठी लिखी और उसे वहीं रखकर, घर से भाग गए। जहां से वह सीधे जाकर पंडित आज़ाद की टीम में शामिल हुए।
इन सबको पैसे की जरूरत थी। जिसपर इन्होंने विचार किया। और फैसला किया की हम अंग्रेज़ी सरकार को लूटेंगे। इसलिए इन सब ने मिलकर काकोरी काण्ड को अंजाम दिया। आइए विस्तार से जानते है इतिहास के पन्नों में दर्ज इस काण्ड के बारे में।
काकोरी काण्ड
स्वतंत्रता आंदोलन को रफ्तार देने के लिए धन की आवश्यकता थी। जिसके चलते शाहजहांपुर में राम प्रसाद बिस्मिल ने ट्रेन में लदे ब्रिटिश खजाने को लूटने के लिए एक योजना बनाई। और फिर भगत सिंह समेत भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के क्रांतिकारियों द्वारा इस पर 8 अगस्त 1925 को बैठक की गई।
अगले दिन 9 अगस्त 1925 को क्रांतिकारियों ने ट्रेन डकैती को अंजाम देकर ब्रिटिश सरकार की नींद उड़ा दी। इसके पीछे क्रांतिकारियों का मकसद यह था कि ट्रेन से सरकारी खजाना लूटकर उन पैसों से हथियार खरीदने है। और हिंदुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन के सदस्यों द्वारा घटना को अंजाम दिया गया।
काकोरी स्टेशन से करीब 2 किलोमीटर आगे डकैती की इस घटना को अंजाम दिया गया था। क्रांतिकारियों ने चेन खींचकर ट्रेन को रोका और घटना को अंजाम दिया। करीब 4601 रुपये इस घटना में लूटे गए थे। परन्तु इस घटना के बाद पंडित रामप्रसाद बिस्मिल, राजेंद्रनाथ लाहिड़ी, रोशन सिंह और अशफाक उल्ला खां को फांसी की सजा सुनाई गई थी।
साल 1928 में नर्म दल के लाला लाजपत राय ने भगत सिंह को मनाया। और कहां की हम मिलकर ‘Simon Go Back’ के नारे लगाएँगे। अगले दिन जब इस नारेबाजी को अंजाम दिया गया तो पुलिस ने इन सभी पर लाठी चार्ज किया। जिसमे लाला लाजपत राय को गहरी चोट आई। अस्पताल मे अपने इलाज के दौरान उन्होंने दम तोड़ दिया और उनकी मृत्यु हो गई।
उनकी मौत से भगत सिंह, राजगुरु, चन्द्रशेखर, आदि बहुत आहत हुए। और बोले कि यह हमारे पिता समान थे। इनकी मौत का बदला जरुर लिया जाएगा। इन सब ने मिलकर James Scott(जिसने लाठी चार्ज के आदेश दिए थे) को मारने का निर्णय लिया। और कहा कि जल्द ही इसको पक्का गोली मारेंगे।
“सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है,
देखना है ज़ोर कितना बाज़ू-ए-क़ातिल में है”
17 दिसंबर 1927 को वह इस वारदात को अंजाम देने निकल पड़े। लाहौर कोतवाली के सामने भगत सिंह, राजगुरु, चंद्रशेखर और जय गोपाल पहुंचे। उसके बाद चारों अलग- अलग हो कर चिप गए। और James Scott का इंतजार करने लगे की जैसे ही यह थाने से बाहर आएगा, तो गोली मारकर उसकी हत्या कर देंगे। परन्तु वहां से उसकी जगह John Sounders नाम का अंग्रेज अपनी बाइक पर सवार होकर बाहर आया। और राजगुरु ने तुरन्त उस पर एक गोली चला दी। जिसके बाद भगत सिंह भाग कर आए और तीन गोलियां उसके सीने पर दागी। पुलिस ने जब उनको पकड़ने की कोशिश की तो यह सब वहां से भागने लगे।
एक हिंदुस्तानी थानेदार भी उनका पीछा करने लगा। जिसे चंद्रशेखर आज़ाद में समझाया- “वापिस चला जा, तू हिंदुस्तानी है, हम तुझको नहीं मारना चाहते।” किंतु वह नहीं माना और मजबूरन चंद्रशेखर आज़ाद को उसे भी गोली मारनी पड़ी। फिर वहां से भाग गए।
अगले दिन इन सब ने खुद ही खुल्लेआम एलान किया की- “हमने लाला लाजपत राय” की मौत का बदला sounders की हत्या करके ले लिया है।” इसे पढ़कर तों गोरों के पैरों तले ज़मीन खिसक गई। और उन्होंने आदेश दिए की इन लड़कों को हर हाल में पकड़ो। जिसके बाद से चारों तरफ़ इनकी तलाश होने लगी। परन्तु इतनी आसानी से कहां यह गोरों के हाथ लगने वाले थे।
भगत सिंह ने बनाया बम: भारत से लेकर इंग्लैंड तक मचा तहलका
पुलिस की नजरों से जैसे- तैसे छुपते- छुपाते वह सभी दिल्ली से चंद किलोमीटर की दूरी पर बसा नोएडा शहर के नलगढ़ा गांव में पहुँचे। जहां भगत सिंह ने अपने क्रांतिकारी साथियों के साथ मिलकर बम बनाया। जिसके चलते नलगढ़ा गांव में उन्होंने कई दिन गुजारे थे। अंग्रेजी शासन को इसकी भनक तक नहीं लगी।
कुछ दिनों बाद नई दिल्ली स्थित ब्रिटिश हुकूमत की तत्कालीन सेंट्रल असेंबली के सभागार में भगत सिंह ने इस बनाए हुए बम को फेंका। जिसके बाद वहां तहलका मच गया। सभी लोग वहां गबरा गए। परन्तु भगत सिंह ने उस बम को जान- भुजकर ऐसी जगह फ़ेका जिससे किसी को जान का नुकसान ना हो।
वह चाहते तो उधर आसानी से भाग सकते थे। लेकिन सेंट्रल असेंबली के सभागार में बम फेंकने के बाद भी वह वहीं खड़े रहे, भागे नहीं। एक तरह से भगत और उनके साथियों ने आत्मसमर्पण किया। वह अच्छे से जानते थे की अगर पकड़े गए तो उन्हें अंग्रेजी शासन से कड़ी सजा मिलेगी और हुआ भी ऐसा ही। बावजूद इसके वह बिलकुल नहीं डरे।
low intensity के इस बम से सभा में धुआँ ही धुआँ हो गया था। फिर भगत सिंह ने कई सारे कागज़ सभा में फेंके। जिन पर लिखा था- “बहरों को सुनाने के लिए धमाका जरुरी है।” जब पुलिस उन सभी को पकड़ कर ले जाने लगी तो वह जोरों से इंकलाब ज़िन्दाबाद के नारे लगाने लगे।
भगत सिंह को जेल में बंद कर दिया गया। परन्तु वह ऐसे साहसी थे जो जेल में भी नहीं माने। वह जेल के अंदर भी नारे बाजी करते रहे। इसके चलते अंग्रेज काफ़ी घबरा गए थे। और धीरे- धीरे अंग्रेज घुटने ठेकने पर मजबूर पड़ते गए। भगत सिंह का 2 साल का कारावास था। जेल में अच्छी सुविधा ना होने पर उन्होंने जेल के अंदर भी आंदोलन चलाया। और ये सब मिलकर अनशन पर बैठ गए। जिसके बाद गोरों ने फैसला किया की इस आदमी को बांकी कैदियों से अलग करा जाए। पूरे 64 दिन तक भगत सिंह ने अनशन किया। अक्सर जेल के अंदर भी भगत सिंह पुस्तकें पढ़ते रहते थे। और कहते थे की “मै एक ऐसा पागल हूँ, जो जेल में भी आज़ाद हूँ।”
भगत सिंह को फांसी
कोर्ट में भगत सिंह, शिवराम राजगुरु और सुखदेव पर मुकदमा चल रहा था। जहां से इन तीनों को फांसी की सजा सुनाई गई। इसके बावजूद तीनों कोर्ट में भी जोर- जोर से इंकलाब ज़िन्दाबाद के नारे लगा रहे थे।
और 23 मार्च 1931 को भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी दे दी गई। वैसे तो उनकी फांसी अगली दिन 24 मार्च को होनी थी। परन्तु पूरे देशभर में उनकी रिहाई के लिए प्रदर्शन हो रहे थे। कई यहां हंगामा ना हो जाए, इस डर से ब्रिटिश सरकार ने चालाकीं से 23 मार्च 1931 को इन तीनों को फांसी दे दी।
Shaheed Bhagat Singh एक महान विचारधारा रखने वाले युवक थे। इतनी कम उम्र में भी उनके अंदर देशभक्ति का जज्बा कूट- कूट कर भरा था। कहते है जब तीनों को फांसी दी जा रही थी तब भी उनके चेहरे पर हंसी थी। और वह लगातार इंकलाब के नारे लगा रहे थे।
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Shaheed Bhagat Singh की आखरी ख्वाइश
जब भगत से उसकी आखरी ख्वाइश पूछी गई तो जवाब में उन्होंने कहा- “ मैं मरने से पहले Vladimir Lenin की पूरी बायोग्राफी पढ़ना चाहता हूँ। Lenin की बायोग्राफी पढ़ के ही मरूँगा।”
जब इनको फांसी देने के लिए अंग्रेज इनके बैरक में पहुंचे तो भगत बोले- “ठहरों एक क्रांतिकारी दूसरे क्रांतिकारी से मिल रहा है।” और Lenin की किताब का आखरी पन्ना पढ़ने के बाद ही उठे।
धन्य है वो मां जिसने Shaheed Bhagat Singh से जैसे वीर को जन्मा। धन्य है वो जवानी जो भगत सिंह ने जी। शहीद भगत सिंह एक सच्चे वीर थे।
ना जाने कितने झूले थे फाँसी पर,
ना जाने कितनों ने गोलियाँ खाई थी।
फिर क्यों झूठ बोलते हो साहब,
कि सिर्फ चरखा चलाने से आज़ादी आई है।
भारत माता की जय
इंकलाब ज़िन्दाबाद
FAQs
Q- भगत सिंह का पूरा नाम क्या था?
Ans- उनका पूरा नाम भगत सिंह संधू था।
Q- भगत सिंह का जन्म और मृत्यु कब हुई थी।
Ans- भगत सिंह का जन्म 27 सितंबर 1907 में हुआ था। और उनकी मृत्यु 23 मार्च 1931 को हुई थी।
Q- भगत सिंह की मृत्यु कैसे हुई थी?
Ans- उनको अंग्रेज सरकार ने फांसी par लटकाया था।
Q- भगत सिंह क्या कहते थे?
Ans- “वह मुझे मार सकते हैं, लेकिन मेरे विचारों को नहीं। वह मेरे शरीर को कुचल सकते हैं, लेकिन मेरी आत्मा को नहीं।”