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उत्तराखंड के जोशीमठ में प्रत्येक वर्ष की तरह इस वर्ष भी जोशीमठ के नरसिंह प्रांगण में शनिवार को वीर तिमुंडिया मेला आयोजित किया गया। इसका आयोजन बद्रीनाथ के कपाट खुलने से एक हफ़्ते पहले किया जाता है। वहीं हर साल मंगलवार या शनिवार का दिन ही इस मेले के लिए निर्धारित किया जाता है।

माना जाता है तिमुंडिया तीन सिर वाला राक्षस था। जो एक सिर से देखने, एक से मांस खाने और एक से अध्ययन करने का काम करता था। उसने बद्रीनाथ के आस-पास के इलाकों में किसी जमाने में अपना आतंक मचाया हुआ था। प्रतिदिन वह आस-पास के गांव में किसी ना किसी मनुष्य को खा जाता था। एक दिन मां दुर्गा देवयात्रा पर थी। उस दिन गांव वाले मां के स्वागत के लिए आए और पूछने पर पता लगा सब लोग तिमुंडिया के डर से घरों से बाहर नहीं निकल रहे हैं।

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वो हर दिन एक मनुष्य को खा जाता था। जब मां दुर्गा के कहने पर उस दिन कोई नहीं गया तो क्रोधित राक्षस गांव में आ पहुँचा। जिसके बाद मां दुर्गा और तिमुंडिया राक्षस दोनों के बीच भयंकर युद्ध हुआ। मां दुर्गा उसके दो सिर काट देती हैं। एक सिर गिरकर सेलंग के पास जा गिरता है जिसे पतपतवा वीर कहते और दूसरा सिर उर्गम के पास जा गिरा जिससे हिस्वा कहते है।

जैसे ही मां दुर्गा उसका तीसरा सिर काटने को होती है तो वह तुरन्त चरणों में चला जाता है। माँ उसकी वीरता से बहुत प्रसन्न होती है और उसे अपना वीर बना देती है। इसके बाद माँ उसे आदेश देती है, आज से वो मनुष्य का भक्षण नहीं करेगा। साल में एक बार उसे एक पशु बकरी की बलि और अन्य खाना दिया जाएगा। तब से यह परम्परा चली आ रही है और हर वर्ष यहाँ तिमुंडिया मेला मनाया जाता है।

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